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Founded in 1923 by Divine inspiration to propagate the Gita. The institution today runs on the above said inspiration being strengthened by Sethji Jaydayalji Goyanadaka, Bhaiji - Hanuman prasadji Poddar and Swamiji - Shri Ramsukhdasji Maharaj.
'गीताप्रेस' - यह नाम ही अपनेमें पूर्ण परिचय है। भगवदीय सत्संकल्प ही प्रेरक बनकर 'गीताप्रेस'के रूपमें मूर्तिमान् रूपसे अवस्थित है। इसका नामकरण भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रकी अमोघ एवं कल्याणमयी वाणी 'गीता'के नामपर हुआ है। यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है। सन् 1923 ई० में इसकी स्थापना हुई थी। इस सुदीर्घ अन्तरालमें यह संस्था सद्भावों एवं सत्-साहित्यका उत्तरोत्तर प्रचार-प्रसार करते हुए भगवत्कृपासे निरन्तर प्रगतिके पथपर अग्रसर है। आज न केवल समूचे भारतमें अपितु विदेशोंमें भी यह अपना स्थान बनाये हुए है। गीताप्रेसने निःस्वार्थ सेवा-भाव, कर्तव्य-बोध, दायित्व-निर्वाह, प्रभुनिष्ठा, प्राणिमात्रके कल्याणकी भावना और आत्मोद्धारकी जो सीख दी है, वह सभीके लिये अनुकरणीय आदर्श बना हुआ है।
इस संस्थाके संस्थापक ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका (सेठजी) भगवत्प्राप्त महापुरुष रहे हैं। कैसे जीवमात्रका वास्तविक कल्याण हो और कैसे सच्चे अर्थोंमें जीवन जिया जाय, इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिये इस संस्थाकी स्थापना हुई। श्रद्धेय श्रीसेठजीकी भगवद्-वाणी 'श्रीगीताजी'-में अपूर्व निष्ठा, आस्था एवं भक्ति रही है। 'इस ग्रन्थके पठन-पाठन, स्वाध्याय तथा चिन्तन-मननसे सब प्रकारका अभ्युदय और भगवत्प्राप्ति सहज सम्भव है' ऐसा सेठजीका अटूट विश्वास था। अतः उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीताका ही सहारा लिया और सद्भावोंका, सद्विचारोंका कैसे व्यापक प्रचार-प्रसार हो, इस दृष्टिसे उत्तम ग्रन्थोंका प्रकाशन प्रारम्भ किया।
गीताप्रेसके इस पावन सत्संकल्पकी सिद्धिमें नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारका विशेष अवदान रहा है, भाईजी 'कल्याण' जैसे आध्यात्मिक पत्रके आदि सम्पादक और सूत्रधार रहे हैं।
गोबिन्दभवन-कार्यालय कोलकाताके नामसे सोसायटी पंजीयन अधिनियमके अन्तर्गत पंजीकृत गीताप्रेस अपने आरम्भिक-कालसे ही एक संस्थाके रूपमें प्रतिष्ठित रही है। सभीका ऐसा विश्वास है कि गीताप्रेसका सारा कार्य भगवान् का कार्य है और भगवान् स्वयं ही इसकी देखभाल करते हैं, तथापि निमित्त रूपमें अनेक महानुभावोंद्वारा इसके संचालनका दायित्व निर्वाह होता आ रहा है। प्रत्यक्षमें इस संस्थाके न्यास-मंडल (ट्रस्ट-बोर्ड) -द्वारा इसकी कार्य-प्रणालीको नियंत्रित किया जाता है। इस संस्थाकी चल-अचल सम्पत्तिका यहाँके न्यासीजनोंके साथ कोई भी व्यक्तिगत आर्थिक स्वार्थका सम्बन्ध नहीं है। गीताप्रेसके संस्थापक 'सेठजी' ने इस संस्थाके माध्यमसे अपने परिवारके किसी भी सदस्यका भरण-पोषण नहीं किया। इस संस्थाके सूत्रधार होते हुए भी उन्होंने अपने-आपको व्यक्तिगत प्रचारसे सर्वथा दूर रखा। इस कारण गीताप्रेसके किसी भी प्रकाशनमें 'सेठजी','भाईजी' आदिका चित्र अथवा जीवन-चरित्र प्रकाशित नहीं किया गया है।
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